पापा अफ़सोस जाता रहे थे कि उनकी जाति में कोई ढंग का रंगदार पैदा नहीं होता। इस जमाने में जाति के उत्थान के लिए रंगदार, गुंडों और बाहुबलियों का होना बहुत जरुरी है...
बड़े भैया बताने लगे कि उनका सहपाठी दिनेश चंद पाठक आजकल डी सी पी कहलाता है। सुनते हैं कि कई मंत्रियों तक उसकी पहुँच है। अपने लोगों को नौकरी दिलाता है, जमीन-जायदाद का फ़ैसला करता है। थाने पहुँच जाए तो थानेदार तक सलूट करता है। शायद इस बार एम.एल.ऐ भी हो जाए। लोग भी उसे बहुत सम्मान देते हैं...
कोने में बैठा बबलू गौर से उनकी बातें सुन रहा था। कह उठा-"पापा, आप कहते हैं मैं लंठ हूँ। मारपीट करता रहता हूँ। मैं बन सकता हूँ डी सी पी ना?
पापा के होश गम, मम्मी अवाक् और भैया गुर्रा उठे-"हाथ-पैर तोड़कर घर में बंद कर दूंगा...गुंडा बनेगा! आवारा कहीं का...
बड़े भैया बताने लगे कि उनका सहपाठी दिनेश चंद पाठक आजकल डी सी पी कहलाता है। सुनते हैं कि कई मंत्रियों तक उसकी पहुँच है। अपने लोगों को नौकरी दिलाता है, जमीन-जायदाद का फ़ैसला करता है। थाने पहुँच जाए तो थानेदार तक सलूट करता है। शायद इस बार एम.एल.ऐ भी हो जाए। लोग भी उसे बहुत सम्मान देते हैं...
कोने में बैठा बबलू गौर से उनकी बातें सुन रहा था। कह उठा-"पापा, आप कहते हैं मैं लंठ हूँ। मारपीट करता रहता हूँ। मैं बन सकता हूँ डी सी पी ना?
पापा के होश गम, मम्मी अवाक् और भैया गुर्रा उठे-"हाथ-पैर तोड़कर घर में बंद कर दूंगा...गुंडा बनेगा! आवारा कहीं का...
2 टिप्पणियां:
bahut sashakt short story hai neeraj jee. vichaar yukt aur hamaare samaaj kaa aainaa. badhaaee
आपने बड़े ही सुंदर ढंग से सच्चाई फ़रमाया है इस कहानी के दौरान! अच्छी लगी!
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...