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9 मार्च 2016

कविता के टुकड़े...

=>अखबार =>
आजकल
मैं पढता नहीं अखबार,
एक ही ख़बर
बार-बार।


=> कविता=>
शब्दों को तोड़कर
हेर-फेर कर
जो लिख जाता हूँ
कहता हूँ है कविता।

6 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

badhiya hai .......yah vi thik laga ki ulat palat ke mai likhata hu our kahata hu kawita...

सर्वत एम० ने कहा…

आपने जितनी छोटी कविता लिखी है उतना ही अच्छा किया है गागर में सागर भर दिया है

रानी पात्रिक ने कहा…

आप उसे कविता कहें या कुछ और, हम तो पढ़ते रहेगे बार बार।

Urmi ने कहा…

वाह आपकी ये छोटी सी प्यारी सी कविता मुझे बेहद पसंद आया!

सदा ने कहा…

बहुत ही सही ये कविता के टुकड़े नहीं पूरी सच्‍चाई व्‍यक्‍त की है आपने ।

Urmi ने कहा…

आपकी हर एक छोटी कविता बहुत ही प्यारी है और एक अलग ही बात है! लिखते रहिये!

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...