घर की तामीर चाहे जैसी हो
इसमें रोने की जगह रखना!
जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तन्हाईयाँ बचा रखना!
मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने दिल में कहीं खुदा रखना!
मिलना-जुलना जहाँ जरुरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना!
उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस जगह पता रखना!
इसमें रोने की जगह रखना!
जिस्म में फैलने लगा है शहर
अपनी तन्हाईयाँ बचा रखना!
मस्जिदें हैं नमाजियों के लिए
अपने दिल में कहीं खुदा रखना!
मिलना-जुलना जहाँ जरुरी हो
मिलने-जुलने का हौसला रखना!
उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस जगह पता रखना!
12 टिप्पणियां:
कम शब्दों में बेहतरीन गजल . आभार
जिस्म मे फैलने लगा है शहर
अपनी तन्हाईयाँ बचा रखना
अत्यंत खूबसूरत बिम्ब दिया है आपने.
बेहद संवेदन शील रचना...
आप की इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
apne dilme khuda na ho to kaheeen nahee ho sakta...behtaareen abhwyakti jise baar,baar padhneka man karta hai.....Nanoj ji ne jaise mere moohse alfaaz chhen liye ho!
http://shamasansmaran.blogsot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
बहुत बेहतरीन!!
बहुत सुन्दर गज़ल प्रस्तुत की है, आपने।
बधाई!
बहुत सुन्दर रचना ।
bahut hi behtreen jagrit karti gazal......badhayi
waah, ghar ki tameer chahe jaisi ho ismein rone ki jagah rakhna......bahut badhiyaa
उम्र करने को है पचास को पार
कौन है किस जगह पता रखना!
यथार्थबोध कराती पंक्ितयां
http://rajey.blogspot.com/
This ghazal is sung by Jagjit Singh in his album "In search" and is written by Nida Fazli, hope everybody knows here. nyhow wonderful gazal
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...