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29 सित॰ 2009

आज की नारी

बेटी आज की गाय नहीं
जिसे खूंटे में बाँध दो
और चरणे को थोरी सी घास दाल दो!
वह आज की नारी है
उसकी प्रगति जारी है!
आज...
वह
जलती हुई
मोमबत्ती है
और
पिघलता हुआ मोम,
आज की नारी
उन्नति की ऐसी शिला है
जिसके सहयोग से
समाज का नया रूप खिला है!

7 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

बटी उन्नति की शिला --
वाह बहुत सुन्दर

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छा चित्रण है। कम शब्दों में ... बधाई!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

sach kaha......aur satya ko bebaki se prasut kiya
.........
comment ki jagah thik se nahi dikhti

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन रचना.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई!

vandana gupta ने कहा…

behtreen..........nari ka sahi roop prastut kiya hai

bhaskar sah ने कहा…

I appreciate the move, find some Hindi grammatical
mistaks

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...