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28 अग॰ 2009

नज़ारें आपके हैं

हर तरफ़
सबसे आगे जाने की
दौर चल रही थी!
मैं उसमे सबसे
पीछे चल रहा था!
हर बात में
ले लिया करता था
मैं खुदा
से इजाज़त!
आज
खुदा भी हमसे
दूर हो गया था!
प्यार से जिसे
बुलाया था मैंने
आज वो भी मेरा
कोई न रहा!
आज मैं
सबसे अलग
रहना चाहता हूँ
तो बुलावा आया आपका!

8 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

लिखते रहिये!!

shama ने कहा…

क्यों होता है ऐसा ?अंत में यही कहना होगा,कि, वही होता है ,जो मन्ज़ूरे खुदा होता है ..! और जो खुदा को मंज़ूर , उसे हम क्या नामंज़ूर करें !

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Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत सुन्दर.

Vinay ने कहा…

अच्छी रचना है
---
तख़लीक़-ए-नज़र

रश्मि प्रभा... ने कहा…

aisa hi hota hai......bahut sahi alfaaz

Neeraj Kumar ने कहा…

अच्छा है ना! अकेले रहना क्यों चाहते हो??? कविता सही है...लेकिन कुछ और ध्यान दो इसकी बनावट और शब्दों के चुनाव पर...
लिखते रहो...

Urmi ने कहा…

वाह बहुत बढ़िया लगा! नए अंदाज़ और शानदार प्रस्तुती!
मेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है -
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

V Vivek ने कहा…

Aap sabhi logon ka vichar achchha hai. Mujhe pasand aaya. Isi tarah apne vichar deten rahen. Thanks...... Thanks very much......

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...