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17 जुल॰ 2009

जिंदगी को एक आजाद मोड़ दो...

जा रहा हूँ दूर जीवन से हार कर

रो रही है आँख तुझको पुकार कर।

मैं नहीं हैरान दस्तूर है यही

क्यों रखूँ उम्मीद सच को बिसार कर।

जिंदगी को एक आजाद मोड़ दो

जो मिले दिलदार कहना कि प्यार कर।

जिंदगी में जो मुलाकात हो कभी

फेर लेना पीठ माजी बिसार कर।

ये तिरे जज्बात जंजाल हैं बने

कर नई शुरुआत अहसास मार कर।

jhwuqbznyr

8 टिप्‍पणियां:

V Vivek ने कहा…

अच्छा प्रयास है ...लिखते रहें...
जिंदगी में जो मुलाकात हो कभी

फेर लेना पीठ माजी बिसार कर।

बहुत पसंद आई ये पंक्तियाँ...

Anjana ने कहा…

kisi ek gazal ki yaad dilati hai ...lagta hai ki pahle bhi suna hai kahin...

mehek ने कहा…

bahut sunder waah,uahi zindagi ke mayane hai.

M Verma ने कहा…

कर नई शुरुआत अहसास मार कर।
===
प्रतीक्षा है उस नई शुरुआत की
बहुत सुन्दर रचना

shama ने कहा…

Kasak se bharee..aah se janmee rachnaa...!

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Unknown ने कहा…

जिंदगी को एक आजाद मोड़ दो

जिंदगी में जो मुलाकात हो कभी

फेर लेना पीठ माजी बिसार कर।

Urmi ने कहा…

इस शानदार और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाई!

shama ने कहा…

मैंने इसके पहले जुर्रत नही की ...आज लगा के , आपको कुछ कह सकती हूँ ..! रचना तो बेहद सुंदर है ..कुछ उर्दू के अल्फाज़ ग़लत लगते हैं ..जैसे कि ' माजी ' नही , 'माज़ी ' होना चाहिए या, मुलाक़ात होना चाहिए ...'q' से,तथा ...'ज़िंदगी ','z' से ...
आपने बुरा तो नही माना ?वरना क्षमा करें !आप बेहतरीन लिखते हैं ...! गर तलफ़्फ़ुज़ सही हों ,तो पढने में, और भी मज़ा आएगा !
ऐसा तो नही कि ,छोटा मुँह और बड़ी बात ?

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...