फ़ॉलोअर

17 जुल॰ 2009

यह कैसा पुरूष...



यह कैसा पुरूष!
उसके आंखों से बह रहे आंसू
जमाने से छुपे नहीं...
उसने किया अपने अन्तर के
हाहाकार का प्रदर्शन सरेआम...
उसने हृदय के कोमलता का,
जीवन की दयनीयता का
प्रकटीकरण स्वयं किया।

यह कैसा पुरूष!
उसने नारी के कन्धों का
सहारा क्यों लिया...
सारे पुरातन पौरुष को
व्यक्तित्व की दृढ़ता को
क्यों कलंकित कर दिया?

5 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

gahare bhaw hai ...bandhu

रश्मि प्रभा... ने कहा…

badhiyaa

vandana gupta ने कहा…

bahut hi badhiya

M VERMA ने कहा…

गहराई

Urmi ने कहा…

बहुत ही गहरे भाव के साथ लिखी हुई आपके ये उम्दा रचना बहुत अच्छा लगा!

एक टिप्पणी भेजें

एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...