यह कैसा पुरूष!
उसके आंखों से बह रहे आंसू
जमाने से छुपे नहीं...
उसने किया अपने अन्तर के
हाहाकार का प्रदर्शन सरेआम...
उसने हृदय के कोमलता का,
जीवन की दयनीयता का
प्रकटीकरण स्वयं किया।
यह कैसा पुरूष!
उसने नारी के कन्धों का
सहारा क्यों लिया...
सारे पुरातन पौरुष को
व्यक्तित्व की दृढ़ता को
क्यों कलंकित कर दिया?
उसके आंखों से बह रहे आंसू
जमाने से छुपे नहीं...
उसने किया अपने अन्तर के
हाहाकार का प्रदर्शन सरेआम...
उसने हृदय के कोमलता का,
जीवन की दयनीयता का
प्रकटीकरण स्वयं किया।
यह कैसा पुरूष!
उसने नारी के कन्धों का
सहारा क्यों लिया...
सारे पुरातन पौरुष को
व्यक्तित्व की दृढ़ता को
क्यों कलंकित कर दिया?
5 टिप्पणियां:
gahare bhaw hai ...bandhu
badhiyaa
bahut hi badhiya
गहराई
बहुत ही गहरे भाव के साथ लिखी हुई आपके ये उम्दा रचना बहुत अच्छा लगा!
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...