दस्तूर-ऐ-इश्क निभाने आए हैं,
लो आज महफ़िल में दिवाने आए हैं।
दुल्हन बनी आप सजी हैं गहनों से,
खूने-जिगर मांग सजाने आए हैं।
जज्बात में जोश भरा था तुमने भी,
मदहोश ऐ हुस्न जगाने आए हैं।
बदनाम है प्यार जमाने में काफ़ी,
तस्वीर की ओट दिखाने आए हैं।
मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।
8 टिप्पणियां:
मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।
इस ज़ज्बे को सलाम --- बहुत खूब
मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।
बहुत ही सुन्दर हैपंक्तियाँ दिल को छू गयी....
जज्बात में जोश भरा था तुमने भी,
मदहोश ऐ हुस्न जगाने आए हैं।
बदनाम है प्यार जमाने में काफ़ी,
तस्वीर की ओट दिखाने आए हैं।
waah lajawab,bahut hi badhiya.
Ek nishabd, maun 'aah'!
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वाह !! बहुत खूब !! खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.
मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।
bahut sundar bhav !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ आपकी लिखी हुई ये ग़ज़ल बहुत अच्छा लगा!
दुल्हन बनी आप सजी हैं गहनों से,
खूने-जिगर मांग सजाने आए हैं।
वाह-वाह-वाह...
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...