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16 जुल॰ 2009

महफ़िल में दिवाने आए हैं

दस्तूर-ऐ-इश्क निभाने आए हैं,
लो आज महफ़िल में दिवाने आए हैं।

दुल्हन बनी आप सजी हैं गहनों से,
खूने-जिगर मांग सजाने आए हैं।

जज्बात में जोश भरा था तुमने भी,
मदहोश ऐ हुस्न जगाने आए हैं।

बदनाम है प्यार जमाने में काफ़ी,
तस्वीर की ओट दिखाने आए हैं।

मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।

8 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।
इस ज़ज्बे को सलाम --- बहुत खूब

ओम आर्य ने कहा…

मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।
बहुत ही सुन्दर हैपंक्तियाँ दिल को छू गयी....

mehek ने कहा…

जज्बात में जोश भरा था तुमने भी,
मदहोश ऐ हुस्न जगाने आए हैं।

बदनाम है प्यार जमाने में काफ़ी,
तस्वीर की ओट दिखाने आए हैं।
waah lajawab,bahut hi badhiya.

shama ने कहा…

Ek nishabd, maun 'aah'!

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रंजना ने कहा…

वाह !! बहुत खूब !! खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई.

Prem Farukhabadi ने कहा…

मंजूर है ख़त्म मुहब्बत में होना,
तारीख में नाम लिखाने आए हैं।

bahut sundar bhav !

Urmi ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ आपकी लिखी हुई ये ग़ज़ल बहुत अच्छा लगा!

V Vivek ने कहा…

दुल्हन बनी आप सजी हैं गहनों से,
खूने-जिगर मांग सजाने आए हैं।
वाह-वाह-वाह...

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...