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6 जुल॰ 2009

आख़िर कब तक...

जीने की अतुल इच्छा के बावजूद
स्थापित आदर्शों का पालन कर
योग्यता की असीमता के साथ
असफलता का पान कर
आख़िर
कब तक जिन्दा रहे आदमी...

5 टिप्‍पणियां:

Urmi ने कहा…

वाह बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ! आख़िर आदमी जिंदा रहे कब तक..ये बड़ा गंभीर विषय है!

Ria Sharma ने कहा…

जीने की अतुलित इच्छा ले ..
सच कहा आपने ...जीना जिंदादिली का नाम है...
बहुत खूब !!!

Thanx for appreciating my blog too
abhaar !

रश्मि प्रभा... ने कहा…

स्थापित आदर्शों का पालन कर
योग्यता की असीमता के साथ
असफलता का पान कर......आज के दौर का अहम् दौर......

किरण राजपुरोहित नितिला ने कहा…

खम्मा घणी सा
बहुत बढिया पिंक्तया । आम इंसान की पीड़ा को जैसे उससे बिना पूछे ही उसके मन से निकाल कर उसी के हाथ में धर दिया हेा । और अपनेपन से कहा -यही है न तेरे मन की कथा।
सारगिर्भत।

M VERMA ने कहा…

गहन भाव
सुन्दर अभिव्यक्ति

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...