फ़ॉलोअर

16 मई 2014

आहिस्ता-आहिस्ता...

वक्त करता है कत्ल आहिस्ता-आहिस्ता
भूल जाते हैं लोग, आहिस्ता-आहिस्ता।

जिंदगी देती जख्म मलहम भी देती है,
यूँ न भर जाते घाव, आहिस्ता-आहिस्ता।

भूलना है वरदान जीने के वास्ते तो
हसरते जाओ भूल, आहिस्ता-आहिस्ता।

आदमी का है काम बढ़ता जाए आगे
वक्त करता है न्याय, आहिस्ता-आहिस्ता।

गर हो नहीं परवाह तो आसां है जीवन
ये समझ ले इंसान, आहिस्ता-आहिस्ता।