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25 मई 2014

नशा सा चढ़ा है...

सवेरे सवेरे कहाँ तू चला है
अभी प्यार का हौसला कुछ बढ़ा है।

हमारे जहन पे सनम रात बाकी
चलो साज छेड़ें वक्त अब मिला है।

इधर साथ तेरा उमंगें जगाता
उधर लाज का साथ साया बना है।

कुवाँरे बदन से महकता समां है
सजा दो लबों पे ग़ज़ल जो बना है।

हमें आज 'नीरज' संभालो नही तो
दीवाने हुए हैं, नशा सा चढ़ा है।