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1 मई 2014

ग़ज़ल... तो नहीं...


जिंदगी ईंटों से बनी कोई इमारत तो नहीं!
कब्रिस्तान में लाशों को शिकायत तो नहीं?

सिकंदर बड़े-बड़े वक्त की मिट्टी में मिले,
मौत शहंशाह की भी क़यामत तो नहीं!

दाग मेरे दामन में थे पुराने कितने,
दिखाया था तुझे, की वकालत तो नहीं।

मासूमों के खून से रंगी है सरजमीं ,
शायरी है जंग मेरी, इबादत तो नहीं।

झींगुर की आवाज़ से सन्नाटा मिटे,
खुदा तेरी इतनी इनायत तो नहीं।