जाने क्यूँ...
तन पर ओढी
मायूसी की चादर उतारकर
बेरंग जमाने पर
रंग उडाने का
जी नहीं करता!
जाने क्यूँ...
फुलझडी जलाकर
रौशनी की बूंदे
पसरे अंधकार पर
छिडकने का
जी नही करता!
जाने क्यूँ...
अहले सहर
पत्तों पे बिखरे
शबनमी मोटी उठाकर
आँखों से लगाने का
जी नहीं करता!
जाने क्यूँ...
आदत छूट रही है
जिंदगी से दोस्ती की,
बढ़कर आगोश में
खुशियाँ भरने का
जी नही करता!