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14 अप्रैल 2014

कविता...

शब्दों को तोड़कर
हेर-फेर कर
जो लिख जाता हूँ
कहता हूँ, है कविता...

हृदय में दबी हुई

प्रतिशोध की ज्वाला
बंधनों को झटककर
जब चीख उठती है
कहता हूँ, है कविता...

जिन्दगी की दौड़ में

आगे- पीछे होते
ठिठककर रुक जाता हूँ
बनाता हूँ बहाने
कहता हूँ, है कविता...

मासूम ख्वाबों की

सुनसान कब्र पे उगी
अनजान घासों को
सींचता हूँ अश्कों से
कहता हूँ, है कविता...