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16 अप्रैल 2014

पश्चाताप...अब क्यों?

मैं जब कहता हूँ
सोया नहीं कई रातों से,
तुम्हें होता नहीं यकीन।

मैं जब सोचता हूँ
घर से बाहर जाऊँ कैसे,
कदम तले नहीं जमीन।

मैं जब चाहता हूँ
भावों को पिरो दूँ कागज़ पे,
शब्द मिलते नहीं जहीन।

मैं जब ताकता हूँ
ठहरे वर्तमान से पीछे,
एक टुकडा नहीं सुकून.

मैं तब कोसता हूँ
वक्त जो किए बर्बाद मैंने,
संभला नहीं लेकिन...