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28 अप्रैल 2014

मेरे हमदम... एक ग़ज़ल



तुम दोस्त हो मेरे, तुम ही मिरे हमदम,


तुम पाक ऐसे हो ज्यों भोर की शबनम।






हर बात है तेरी बरसात की झमझम


तुम साथ ऐसे हो ज्यों आँख में नमनम।






अब साथ मेरा दो जब शाम है गमगम


यह रात ऐसी हो ज्यों आग हो मध्यम।






लब आज वो कह दें, सब तोड़ दे बंधन,


आगोश में सोयें, ज्यों एक हो तनमन।