<1>
वचन गुरु पिता के हैं, लगते बड़े कठोर।
निज स्वारथ साधन हेतु, पकडे रहते डोर॥
<2>
काली-काली भैंस को, देख मुझे कुछ होय।
रंग-भेद के कारण न, गौ माता कहलाय॥
<3>
उतने कदम बढाइये, जितनी जरुरत होय।
जंगल सागर ना बचे, धरती मरू बन जाय॥
<4>
रामराज की चाह में, जनता हुई शहीद।
राजनीति के दाँव ने, बाटें संत-फ़कीर॥
<5>
चमड़ी-दमडी का फर्क, परिचय बनता जाय।
लाल नलिका धमनी, हरी शिरा कहलाय ॥
<6>
साजन सावन आ गया, हरित ललित प्रभाव।
हरि बिन हरा ना होगा, हरिन-ह्रदय का भाव॥