चाय पीते हुए प्रोफेसर साहब ने गुल्लू से कहा -"देखो तो बेटे, टॉमी क्यों भौंक रहा है...
लौटकर गुल्लू ने सरकारी असपताल की एक पर्ची देकर बताया-"पापा, बाहर एक लड़का खड़ा है, बाप को कैंसर है, इलाज़ के लिए मदद मांग...
"ये लोग... भीख मांगने का नया तरीका है। तुम्हारे पास दो का सिक्का होगा, दे दो जाकर।"
प्रोफेसर साहब ने लगभग घृणा से पर्ची लौटा दी।
थोड़ी देर में वह कालेज पहुंचे।
कामन रूम में बड़ी ही गंभीरता से प्रोफेसर साहब बोल रहे हैं-"समाज ने, जनता ने इन नेताओं, अभिनेताओं, उद्योगपतियों, खिलाड़ियों को इस मुकाम पर पहुँचाया है। उनके पास आज पैसा है, क्षमता है, योग्यता है; देश की बदौलत, हमारे बदौलत। इनका फर्ज बनता है - राष्ट्र के लिए, जनता के लिए, गरीबों के लिए कल्याणकारी काम करें।"
"भाई, मैं नही कह रहा कि पैसा कमाना ग़लत है, उसे बढ़ाना ग़लत है... लेकिन जिन्होंने फर्श से अर्श तक पहुँचाया, उनका भी तो ख्याल करो। करोड़ों - अरबो समेटे बैठे हो। कहाँ ले जाओगे!"
"बंधुओं, हमें एक अभियान चलाना चाहिए, इन कुबेरों को समाजवाद, साम्यवाद के मूलभूत सिद्धांतों का पाठ पढाना होगा। इन्हे इनका दायित्व याद... ... ..."
4 टिप्पणियां:
कम शब्दों में बहुत कुछ कहा आपकी रचना ने। कौन किसे दायित्व सिखाए.....धन्यवाद।
कथनी और करनी का फर्क स्पष्ट हो जाता है.
सीमित शब्दों में समाज की सच्चाई को बयाँ किया है आपने. बेहतरीन....
बहुत ही सुंदर और कम शब्दों में आपने इतना अच्छा लिखा है जो प्रशंग्सनीय है!
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...