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4 फ़र॰ 2010

भोला इंसान

Neeraj Kumarसुबह रात सी काली
आसमान में खुनी लाली
खाली जूठी प्याली।

भय से फैली आँख
समाचारों की टूटती साख
मासूम सपनो की राख।

गहरी जेबों का प्रहार
रिश्तों को बेचते बाज़ार
खोखले वादों की सरकार।

शिक्षा का अभिमान
भोला बड़ा तू इंसान
व्यावहारिक नहीं तेरा ज्ञान। 

3 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सीमित शब्दों में गूढ बात कह दी आपने अपनी रचना में!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत शानदार तरीके से बात रखी है.

Urmi ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना! चंद शब्दों में आपने सब कुछ कह दिया!

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