1.पतंग
डोर मेरे हाथ मेंसरसर उड़ती पतंग,
जैसे ईश्वर और इंसान का संग।
2.पंखा
पंखा घूमें कमरे में
हवा में फैले तरंग,
जैसे कर्म भाग्य का संग।
तनकर बाहर आए,
जैसे सफलता इतराए।
मैं पढता नहीं अखबार,
एक ही ख़बर
बार-बार।
हेर-फेर कर
जो लिख जाता हूँ
कहता हूँ, है कविता।
जैसे कर्म भाग्य का संग।
3.शराब
तन में उतर कर शराबतनकर बाहर आए,
जैसे सफलता इतराए।
4.अखबार
आजकलमैं पढता नहीं अखबार,
एक ही ख़बर
बार-बार।
5. कविता
शब्दों को तोड़करहेर-फेर कर
जो लिख जाता हूँ
कहता हूँ, है कविता।
6.सवाल
काव्य कहाँ से प्रस्फुटित हो
हृदय में यदि रेगिस्तान बसा हो!
जठराग्नि से पीड़ित तन-मन में
और-और का शोर मचा हो!
सभ्यता के टुकड़े
जुड़ते सभ्यता से
पगडंडियों के द्वारा,
जैसे परमात्मा से आत्माएं...
हृदय में यदि रेगिस्तान बसा हो!
जठराग्नि से पीड़ित तन-मन में
और-और का शोर मचा हो!
7.पगडण्डी
सभ्यता के टुकड़े
जुड़ते सभ्यता से
पगडंडियों के द्वारा,
जैसे परमात्मा से आत्माएं...