रहमोकरम पे आपके/
हमने गुजारें हों/
कुछ पल अगर,
यूँ ना समझना/
सुकून से जीकर/
मर सकें हैं हम।
टूटते रहे थे/
मेरे आसमान के तारे/
एक-एक कर,
रौशनी की लकीर/
दीखती न थी,
बढ़ता जाता था/
अंधेरे का डर।
अजीबोगरीब हुए हादशे/
जिंदगी में हमारे/
यकीन ना होगा,
तबियत से उजाडा/
अपनों ने आशियाँ/
मिलकर जो था बसाया।
रातें होती थीं काली/
दिन भी रौशन ना थे,
शाम-ओ-सहर/
पुकारते रौशनी को/
खड़े रहते थे/
दरवाज़ा खोलकर।
हिम्मत जो की होती/
जिगर फौलाद करने की,
रिश्तों को समझते/
काश समय रहते,
आज अश्कों के हमारे/
मायने अलग होते।
हमने गुजारें हों/
कुछ पल अगर,
यूँ ना समझना/
सुकून से जीकर/
मर सकें हैं हम।
टूटते रहे थे/
मेरे आसमान के तारे/
एक-एक कर,
रौशनी की लकीर/
दीखती न थी,
बढ़ता जाता था/
अंधेरे का डर।
अजीबोगरीब हुए हादशे/
जिंदगी में हमारे/
यकीन ना होगा,
तबियत से उजाडा/
अपनों ने आशियाँ/
मिलकर जो था बसाया।
रातें होती थीं काली/
दिन भी रौशन ना थे,
शाम-ओ-सहर/
पुकारते रौशनी को/
खड़े रहते थे/
दरवाज़ा खोलकर।
हिम्मत जो की होती/
जिगर फौलाद करने की,
रिश्तों को समझते/
काश समय रहते,
आज अश्कों के हमारे/
मायने अलग होते।
7 टिप्पणियां:
आपको वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !
बसंत के आगमन पर ऐसी रचना... पूरा हृदय उड़ेल दिया आपने।
बहुत बढ़िया!
अच्छी रचना , बधाई
बहुत सुन्दर!
ज्ञानदायिनी मातु का जो करते हैं ध्यान!
माता उनके हृदय में भर देती हैं ज्ञान!!
वाह बहुत सुन्दर रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
jiye ho bihar ke lala..the poem is really heart touching....i love this...
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...