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18 नव॰ 2009

ग़ज़ल:- (साभार:- हिंदुस्तान अखबार)

वो साहिल पे गाने वाले क्या हुए!
वो कश्तियाँ चलाने वाले क्या हुए!

वो सुबह आते-आते रह गई कहाँ
जो काफिले थे आने वाले क्या हुए!


मैं जिन की राह देखता हूँ रात भर
वो रौशनी दिखने वाले क्या हुए!

वो कौन लोग हैं मेरे इधर-उधर
वो दोस्ती निभाने वाले क्या हुए!

इमारतें तो जलकर राख हो गई
इमारतें बनाने वाले क्या हुए!

ये आप-हम बोझ हैं ज़मीं के
ज़मीं का बोझ उठाने वाले क्या हुए!

4 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

वो सुबह आते-आते रह गई कहाँ
जो काफिले थे आने वाले क्या हुए!
सुन्दर बहुत सुन्दर

मनोज कुमार ने कहा…

आप की इस ग़ज़ल में उत्तम शेर हैं।
वो दोस्ती निभाने वाले क्या हुए

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर गजल पढ़वाने के लिए आभार!

vandana gupta ने कहा…

bahut hi sundar gazal.........badhayi

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