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29 अक्तू॰ 2009

एक और रात.....

अजीब-सा रास्ता
भूली हुई राह
एक और रात
लो फिर आ गई!

भुला-भुला-सा प्यार
भूली-भूली-सी जगह
एक और रात
लो फिर आ गई!

मुझे समझ में नहीं आया
कहानी की क्या विषय थी
एक और रात
लो फिर आ गई!

चेहरे पर उदासी
मन में क्या बात थी
एक और रात
लो फिर आ गई!

मन प्रसन्न था
बात खुशी से होने लगी
एक और रात
लो फिर आ गई!

एक रात जागे थे
एक दिन सोये थे
एक और रात
लो फिर आ गई!

प्यारा-प्यारा-सा स्वप्न
प्यारी-प्यारी-सी बात
एक और रात
लो फिर आ गई!

उनसे मैं खुश था
वो मुझसे नाराज़ थे
एक और रात
लो फिर आ गई!

7 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

रोज रात आ जाती है,
और एक दि‍न
सूरज की धूप में

या चांदनी की रात में

वो काली रात भी आयेगी

जब कोई सुबह होगी ना शाम

ना कोई रात
तो मेरे मन

क्‍यों न मैं उस घड़ी का
ही करूं इंतजाम
उस घड़ी की ही बात करूं।

M VERMA ने कहा…

लगता है कोई
उनका सन्देशा ला रहा है
चाँदनी छिटकी हुई है
चाँद मुस्करा रहा है
लो फिर एक रात आ गयी.

मनोज कुमार ने कहा…

हमें तब तक किसी अच्छे मौक़े का इल्म नहीं होता जब तक वह हमारे हाथों से निकल नहीं जाता।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!

रानी पात्रिक ने कहा…

बहुत खूब। अब दिन का इन्तज़ार है:-)

Murari Pareek ने कहा…

बहुत ही सुन्दर सी बात, जो मन को मन को भा गई |

कडुवासच ने कहा…

... sundar rachanaa !!!!!!

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