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19 अक्तू॰ 2009

मेरी कुछ बातें

मैं सोचता हूँ

हर दिन

कुछ करुँ नया!

सोचते-सोचते

कुछ मिला

और वो दिन

बीत गया!


मेरा सवेरा

होता था

कुछ ख़ास

लम्हों के साथ!

बीतती थी

मेरी रात

एक नए

सोच के साथ!


दीवार बनकर

उदासी मेरे

दिल पर!

क्या करुँ,

क्या करुँ

बचकर रहता हूँ

इससे मैं घबराकर!


मैं अपनी

दिली इच्छा से

बैठता हूँ

कोई नया काम करने!

लेकिन कुछ लोग

ऐसे मिल जाते हैं

जो लग जाते हैं

उसे रोकने!


मैं अपनी

उदासी भरी बात

आज आप लोगों से

व्यक्त कर रहा हूँ!

आप इसे

समझ सकतें हैं

तो समझें

नहीं तो मैं

कुछ भी नहीं

कह रहा हूँ!


कोई भी काम

मैं ठीक से

नहीं कर पाटा

मेरे मन में

घबराहट गूंजती है

जिसे मैं

कह नहीं पाटा!


"मेरी कुछ बातें"

किसी की दिलों में

नहीं जाती!

सब अपने

रहते हैं मग्न

और मेरी बात

समझ में नहीं आती!

7 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

मै सोचता हूँ
हर दिन
कुछ नया करूँ
यही वो लौ है जो जलती रहनी चाहिये, कुछ नया करने की चाहत ही कुछ नया करवाती है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सुन्दर रचना है।
भइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!

श्यामल सुमन ने कहा…

कुछ न कुछ सबके भीतर में छुपा हुआ है द्वन्द।
सुमन ठान ले कुछ करने को मन होता स्वच्छन्द।।

सादर
श्यामल सुमन
www.manoramsuman.blogspot.com

मनोज कुमार ने कहा…

हताशा का संवेदनशील दस्तावेज

निर्मला कपिला ने कहा…

अन्त: संवेदनाओं का संघर्श बहुत अच्छी भावाविव्यक्ति है शुभकामनायें

संगीता पुरी ने कहा…

यही तो सबके मन का द्वन्‍द्व है .. जो कहना चाहता है कह नहीं पाता .. जो कह पाता है लोग उसे समझ नहीं पाते !!

vandana gupta ने कहा…

antardwand ko achche shabd diye hain.

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