फ़ॉलोअर

14 अक्तू॰ 2009

इरादे

इरादे अच्छे होते होते हैं
इरादे बुरे होते हैं
पर क्यों होते हैं वे अच्छे या बुरे?
दिल तो बुरा नहीं होता,
दिल भी बुरा नहीं होता
और इनमें ही बनते हैं इरादे!

फिर क्यों हो जाते हैं
इराद अच्छे या बुरे?
समाज के मानक पर जो
खरा वो अच्छे,
समाज के मानक पर जो खोता वो बुरा!
कौन बनाता है समाज का मानक?
व्यक्ति का अनुभव या
दबंगों की सहूलियत?
या फिर दोनों का सम्मिश्रण?
पर रुकते नहीं हैं इरादे
चाहे बुरा कहो या भला,
क्योंकि इरादे न अच्छे होते हैं,
न बुरे होते हैं
वे तो हैं

ज़िन्दगी के प्रवाह के अनुभव
ज़िन्दगी की मज़बूरी या
प्रर्वच्नाओं के प्रतिफल!
वे उठते हैं
वर्तमान को चुनौती देने
इतिहास को बदलने
और भविष्य का श्रीजन करने
चाहे अच्छें हो या बुरे
उनका होना जरुरी है
क्योंकि तभी चलता है
विकास का क्रम!

5 टिप्‍पणियां:

मनोज कुमार ने कहा…

रचना जिन्दगी को एक नए नज़रिए से देखने की ताक़त देती है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

jivan ka gambheer tathya.......



कुछ दीये खरीदने हैं,
कामनाओं की वर्तिका जलानी है .....
स्नेहिल पदचिन्ह बनाने हैं
लक्ष्मी और गणेश का आह्वान करना है
उलूक ध्वनि से कण-कण को मुखरित करना है
दुआओं की आतिशबाजी ,
मीठे वचन की मिठास से
अतिथियों का स्वागत करना है
और कहना है
जीवन में उजाले - ही-उजाले हों

Chandan Kumar Jha ने कहा…

बहुत सुन्दर…………………

कडुवासच ने कहा…

"आओ मिल कर फूल खिलाएं, रंग सजाएं आँगन में

दीवाली के पावन में , एक दीप जलाएं आंगन में "

......दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ |

V Vivek ने कहा…

बहुत सुन्दर बात कही आपने!
मुझे पसंद आया!
लेकिन आप सार्थक विचार दें!

एक टिप्पणी भेजें

एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...