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5 जुल॰ 2009

मैं हूँ...

मैं हूँ

खुशियाँ हैं

खट्टा-मीठा संसार है।

मैं हूँ

जीवन है

जीवन के आदर्श हैं।

मैं हूँ

जिंदगी है

जीने की चाह है।

मैं हूँ

सफलता है

सफल होने की योग्यता है।

मैं न रहूँ

संसार नहीं

जीवन नहीं

आदर्श नहीं

योग्यता नहीं...

2 टिप्‍पणियां:

रानी पात्रिक ने कहा…

कविता आपकी सत्य की बानगी है। सच है जब तक जीवन है तभी तक सब है। मैं जब तक आत्मा स्वरूप है सुन्दर है पर जब वही मैं दिमाग में चढ़ कर बोलता है तो वही अहंकार का रूप ले लेता है।

ओम आर्य ने कहा…

bahut hi sundar manthan .............bahut badhiya

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...