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4 जुल॰ 2009

कविता के टुकड़े...

काव्य कहाँ से प्रस्फुटित हो
हृदय में यदि रेगिस्तान बसा हो!
जठराग्नि से पीड़ित तन-मन में
और-और का शोर मचा हो!

3 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

sahi hai .........jatharagni se badi bhukh our kuchh ho nahi sakati...

Urmi ने कहा…

बिल्कुल सही फ़रमाया आपने! बहुत सुंदर पंक्तियाँ!

सदा ने कहा…

सुन्‍दरता के साथ सत्‍य को व्‍यक्‍त करती ये पंक्तियां आभार्

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