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16 जून 2009

प्रसून कंटक: २४/०५/९६

मैं चाहता हूँ
मिल जाना मिट्टी में,
लेकिन आह!
मैं मिल नहीं पाता
क्यूंकि
मैं साधारण मिट्टी नहीं
एक घडा हूँ,
टूटा हुआ घडा...


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1 टिप्पणी:

Urmi ने कहा…

छोटी सी प्यारी सी कविता के लिए बधाई!

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...