जब तक तेरे घर में अँधेरा ना होगा,
मेरे मन में खुशी का बसेरा ना होगा।
शबनम को है इंतजार उस दिन का,
उसके बिना जब कोई सवेरा ना होगा।
आदमी की बढती जाती हैं हसरतें,
शायद कल से कोई फकीरा ना होगा।
ख़ुद में सिमटी जा रही हैं लड़कियां,
गली में झांकता अब मुंडेरा ना होगा।
हम ही हम होंगे साहिल पे 'कायस्थ',
सुहानी शामों में साथ तेरा ना होगा।
मेरे मन में खुशी का बसेरा ना होगा।
शबनम को है इंतजार उस दिन का,
उसके बिना जब कोई सवेरा ना होगा।
आदमी की बढती जाती हैं हसरतें,
शायद कल से कोई फकीरा ना होगा।
ख़ुद में सिमटी जा रही हैं लड़कियां,
गली में झांकता अब मुंडेरा ना होगा।
हम ही हम होंगे साहिल पे 'कायस्थ',
सुहानी शामों में साथ तेरा ना होगा।
इन्हें अवश्य पढ़ें... हिन्दी-युग्म : साहित्य का ज्ञान बढायें शायरी : पसंद आएगी जरुर अजय : पढ़ें और जाने |
---|
2 टिप्पणियां:
शबनम को है इंतजार उस दिन का,
उसके बिना जब कोई सवेरा ना होगा।
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!
बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपने ये ख़ूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल लिखा है जो काबिले तारीफ है!
एक टिप्पणी भेजें
एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...