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16 जून 2009

साथ तेरा ना होगा

जब तक तेरे घर में अँधेरा ना होगा,
मेरे मन में खुशी का बसेरा ना होगा।

शबनम को है इंतजार उस दिन का,
उसके बिना जब कोई सवेरा ना होगा।

आदमी की बढती जाती हैं हसरतें,
शायद कल से कोई फकीरा ना होगा।

ख़ुद में सिमटी जा रही हैं लड़कियां,
गली में झांकता अब मुंडेरा ना होगा।

हम ही हम होंगे साहिल पे 'कायस्थ',
सुहानी शामों में साथ तेरा ना होगा।

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2 टिप्‍पणियां:

कडुवासच ने कहा…

शबनम को है इंतजार उस दिन का,
उसके बिना जब कोई सवेरा ना होगा।
... प्रसंशनीय अभिव्यक्ति !!!!!

Urmi ने कहा…

बहुत ही सुंदर भाव के साथ आपने ये ख़ूबसूरत और उम्दा ग़ज़ल लिखा है जो काबिले तारीफ है!

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