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13 जून 2009

मैं क्या कहूँ?

पूछते हो-कैसा हूँ, मैं क्या कहूँ?

तन्हा हूँ तेरे बिन, मैं क्या कहूँ?

बिकता है प्यार भी ज़माने में,

उसपर सोचता हूँ, मैं क्या कहूँ?

मिलता हैं कई रास्ते मोड़ पे

अंत होगा कहाँ, मैं क्या कहूँ?

करता हूँ रौशनी, मरते पतंगे हैं,

अंधेरे में लेटा हूँ, मैं क्या कहूँ?

मंदिरों में इतनी हैं मूर्तियाँ,

इन्सां हूँ या 'कायस्थ', मैं क्या कहूँ?

1 टिप्पणी:

Urmi ने कहा…

दरअसल मैं हिन्दी फिल्में नहीं देखती इसलिए मुझे पता नहीं की कौन से फ़िल्म में किसने कहा था! खैर आपको फ़िल्म के लाइन याद भी रहते है सुनकर ताज्जुब लगा!
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल लिखा है आपने!

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...