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18 जून 2014

...बताऊँ तो क्या?

नन्हा-सा दिया हूँ 
बुझ भी जाऊँ तो क्या,
परवाने की परवाह थी 
अँधेरे को क्या?

रास्ते पे होते हैं यूँ 
बिखरे पत्थर कितने,
गिनता है राही गुजरता 
कभी उनको क्या?

सैलाबों में जिसके 
साहिल नहीं डूबा करता,
अदना आंसू हूँ,
गिर जाऊँ तो क्या?

लब पे लिए मुस्कान 
आँखों में दर्द छुपा रखा है,
तन्हा हूँ, घायल हूँ,
हाल-ए - दिल बताऊँ तो क्या?