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15 जून 2014

धुँआ-धुँआ जिंदगी...


धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...

कौन कहता है
है आसान यह खेल,
लेना जन्म
और मर जाना एक दिन!!!

कौन नहीं चाहता है
है निभाना रिश्तों को,
हो जाना किसी का
लेकिन जुदा होना धीरे-धीरे!!!

कौन नहीं जानता है
है दस्तूर प्रकृति का,
चकाचौंध रौशनी के बाद
घिर जाना अँधेरे में हर रात!!!

धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...