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20 अप्रैल 2014

प्रेम हूँ, हूँ कृष्ण...

प्रेम का मतलब रब ही जाने
मैं तो भूख मिटाता हूँ,
जहाँ मिले छाया आँचल की
आँखें मूँद सो जाता हूँ।


कहें लोग प्रेम ही ईश्वर
मैं साधक बन जाता हूँ,
जहाँ छलकते नैन प्रेम से
अभिमान छोड़ बह जाता हूँ।


रूप प्रेम के लाखों होंगे
मैं सबको अपनाता हूँ,
जहाँ सिसकता व्याकुल मन है
प्रेम का पाठ पढ़ाता हूँ।

तन सुंदर या मन सुंदर
शंका सभी मिटाता हूँ,
जहाँ प्रेम का हो प्रभाव
सब सुंदर कर जाता हूँ।


मैं कृष्ण और राधा मैं हूँ
मैं ही रास रचयिता हूँ,
जहाँ अचल हो जाता जीवन
मुरली धर आ जाता हूँ।


मन की वाणी, तन की वीणा
भाव इन्हीं में जगाता हूँ,
आओ गाओ प्रेमगीत 
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यह संदेश फैलाता हूँ.