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30 मार्च 2014

फांस की आशंका

लगी पलंग टटोलने, व्याकुल होकर आज।
उठी तुंरत विचारने, रात्री के परिहास॥

कहीं मतंग तरंग में, निकली ऐसी बात।
लगी पिया के ह्रदय, गहरी कोई फांस॥

चली भ्रमित देखने, रुकी हुई है साँस।
लगी भयभीता फिरने, बुझी हुई है आस॥

तभी किचन की ओर से, आई एक आवाज।
बर्तन सारे साफ़ हैं, जली हुई है आंच॥