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7 दिस॰ 2009

बापू सुन ले!

बापू!
तू ये क्या लाया है?

सवारों की गालियाँ सुनता तू,
सवारों को गालियां देता तू,
कभी-कभी हाथापाई करता तू
जो पैसे कमाता है;

उनसे लाई ये टाफियाँ,
ये कापियाँ,
मुझे गालियों जैसी लगती हैं,
लातों और थप्पडों जैसी लगती है।

बापू!
तू क्यों रिक्सा चलाता है?

5 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

सुन्दरता से बयान् व्यथा की कथा

मनोज कुमार ने कहा…

संवेदनशील रचना। बधाई।

कडुवासच ने कहा…

... sundar rachanaa !!!!

Dr.Lal Ratnakar ने कहा…

बहुत समय देते है आप अपने ब्लॉग पर बहुत अच्छा लगा . मै अभी शुरू ही किया हू लिखना काफी त्रुटियाँ हो जाती है मूलतः मै पेंटर हूँ , एक कालेज में एसोसी. प्रोफ . भी |

Urmi ने कहा…

बहुत ही शानदार, ख़ूबसूरत और संवेदनशील रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...