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11 नव॰ 2009

चौराहा पे राही


हर वक़्त ख़ुद को चौराहे पर खड़ा पाता हूँ,


टार्च पास नहीं, अंधेरे में भटक जाता हूँ।





जो सीधे रास्ते चले थे आगे निकल गए,


हम नए राह की खोज में पिछरते चले गए।



Text Colorवक्त का तकाजा समझा मैं ठोकरों के बाद


लहूलुहान थी शख्सियत, खुले थे मेरे हाथ।





गर चाहते हो तुम, दामन भरा हो खुशियों से,


करो मेहनत, गुजरो सदा पुरानी राहों से।





कतरा-कतरा जिंदगी, जिहाद का ऐलान है,


हरेक रास्ता हिम्मती के, पाँव का निशान है।





उस आदमी की मिटटी होती है कुछ खास ही,


ख़ुद बनाता है जो अपनी राह भी, मुकाम भी।

6 टिप्‍पणियां:

दिगम्बर नासवा ने कहा…

US AADMI KI MITTI HOTI HAI KUCH KHAAS HI ...

BAHOOT UMDA BAAT KAHI HAI .... AISE VIRLE HI HOTE HAIN JO APNI RAH KHUD BANAATE HAIN .... MEEL KA PATTHER VO HI HOTE HAIN ...

रश्मि प्रभा... ने कहा…

ठोकरें ही जीवन को सही मायने देती हैं.......अँधेरे खुद बखुद उजाले लेट हैं,
बहुत ही अच्छी रचना .............

Urmi ने कहा…

वाह बहुत सुंदर रचना लिखा है आपने! ज़िन्दगी की सच्चाई को बखूबी प्रस्तुत किया है! हर इंसान ठोकरे खाकर ही सीखता है और गलती हर किसी से होती है पर उस गलती को दुबारा न दोहराया जाए यही कोशिश करनी चाहिए! रचना की हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

मस्तानों का महक़मा ने कहा…

bahut hi sundar panktiyo hai.
padkar achcha laga.

मनोज कुमार ने कहा…

आपकी इस रचना की अंतिम दो पंक्तियां मुझे सबसे अच्छी लगी और उस पर एक शेर पेश है -
हो इरादों में हक़ीक़त,
हौसलों में ज़लज़ला।
आसमां झुककर तुम्हारे पांव तक आ जायेगा,
देख लेना क़िनारा, नाव तक आ जायेगा।

M VERMA ने कहा…

हरेक रास्ता हिम्मती के पाँव का निशान है
बहुत ही सुन्दर भाव है.

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