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4 सित॰ 2009

कुछ शायरी...... मेरी भी सुनिये !

बहार आया तो आशियाना बदल गया!
जब भी मिलना चाहा, तेरा ठिकाना बदल गया!
अब चाहते हो क्यों मेरे पास
अब तो हसीं प्यार का ज़माना बदल गया!

गम मिला, नफरत मिली
मिला ज़माने की बेरुखी!
मिला ना फिर भी प्यार तेरा
मेरे किस्मत में शायद यही सही!

दिल हमारा आपके जुल्मों-सितम के काबिल ना था!
ये अभी मासूम था, आपके नफरत के काबिल ना था!

मोहब्बत में दर्द होती है
फिर भी गम नहीं होता!
दूर रहके भी, प्यार कम नहीं होता!

मेरे मैयत पर आके मेहंदी रचा लेना!
मेरे कफ़न से जोरा बना लेना!
अगर इससे भी सुकून ना मिले
तो मेरे कब्र पर आके सुहागरात मना लेना!

वो मिलते हैं पर दिल से नहीं!
वो बात करते हैं पर मन से नहीं!
वो प्यार तो करते हैं
पर हमसे नहीं!

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया.

Neeraj Kumar ने कहा…

प्रिय विवेक,
लिखते रहो...इसी तरह...
लेकिन मैंने कई बार कहा है की थोडा सा ध्यान दो...

इस बार बताता हूँ की क्या ध्यान देने की बातें हैं---
अब चाहते हो क्यों मेरे पास...
इस वाक्य में "चाहते" का क्या तात्पर्य है???

मिला ज़माने की बेरुखी!---

"बेरुखी" के साथ मिली होना चाहिए ना...
प्रयास करते रहो...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

वो मिलते हैं पर दिल से नहीं!
वो बात करते हैं पर मन से नहीं!
वो प्यार तो करते हैं, पर हमसे नहीं!"

बहुत बढ़िया अशआर पेश किए हैं आपने।
बधाई!

Chandan Kumar Jha ने कहा…

वाह !!!!!!! बहुत सुन्दर………लाजबाव्।

Vinay ने कहा…

वाह!

Urmi ने कहा…

वाह बहुत बढ़िया! लाजवाब और शानदार शेर के लिए बधाई!

V Vivek ने कहा…

Aap sathak baat kahen. Hamen aapse jyada khushi hogi. Hamen khushi hui aapne mere sharyi ko intni baar padha. Thanks very much.....

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...