चांदनी ओढ़ के वो गुजर जाते हैं,
होश में बाद तक हम नहीं आते हैं।
जिंदगी दिल्लगी का हुआ सामां है,
आज तारे सहर में निकल आते हैं।
आशिकी रोग है बच सकें तो अच्छे,
हाल-बेहाल यूँ बाद पछताते हैं।
जुल्म करने लगे हैं अदा से ऐसे,
घायलों को दुआ भी दिए जाते हैं।
खिड़की रौशनी का नही है रास्ता,
देख वो आँख से शे'र फरमाते हैं।
कत्ल हो और हो दर्द ना 'नीरज' तो
जान लो प्यार के तार उलझाते हैं.
6 टिप्पणियां:
जान लो प्यार के तार उलझाते हैं.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
प्यार के तार उलझाते तो है पर जिन्दगी की गुत्थिया यही सुलझाते है
जुल्म करने लगे हैांदा से ऐसे
घायलों को दुआ भी दिये जाते हैं
बहुत बडिया रचना है आभार्
प्यार और दर्द की सुंदर मिलाप..
बहुत ही अच्छा लिखा आपने..
बधाई हो!!!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! इसी तरह लिखते रहिये और हम पड़ने का लुत्फ़ उठाएंगे!
Neeraj ji,
Mai aapke blog pe to aatee rahee..pata nahee kyon, ki, comment post nahee huee..?
Khair, meree tabiyat bhee kuchh kharab rahee...kuchh any samasyayen bhi theen..kshama chahti hun...
narazgee to ho hee nahee saktee..! Aap itnee nirantarase sampark banaye rakhte hain!
Aaj any bhee rachnayen padheen...is rachnakee baat hee kuchh aur lagee.."kisee kaa chandanee odhke' nikal janaa..! Kitna nazuk khyal hai..
अजी आप तो मुहब्बत फरमाते हैं,
....
बहुत खूब...
प्यारे प्यारे शेरोंके लिए...बढियाँ...
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...