उन्नति की होड़ में
जाते क्यों हैं भूल,
आदम की जात है
धरती की हैं धूल।
जीवन की दौड़ में
निकालें कितनी दूर,
उम्र की ढलान पे
थकेंगे हम जरुर।
उखड़ अपनी जड़ से
फैलते चले गए,
सिमटती दुनियाँ में
ख़ुद से बिछड़ गए।
वापस लौटकर हम
चलें गाँव की ओर,
और छोड़कर अहम्
पायें माँ की गोद।
जाते क्यों हैं भूल,
आदम की जात है
धरती की हैं धूल।
जीवन की दौड़ में
निकालें कितनी दूर,
उम्र की ढलान पे
थकेंगे हम जरुर।
उखड़ अपनी जड़ से
फैलते चले गए,
सिमटती दुनियाँ में
ख़ुद से बिछड़ गए।
वापस लौटकर हम
चलें गाँव की ओर,
और छोड़कर अहम्
पायें माँ की गोद।
1 टिप्पणी:
आपको मेरी शायरी और पेंटिंग दोनों पसंद आई उसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत ही सुंदर कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है!
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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...