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19 जून 2009

लिखूं शायरी कैसे...

टुकडों में जी जाती है जिंदगी कैसे,
ज़ख्मों की की जाती है गिनती कैसे!

मेरा हर झूठ बन जाता है सच,
इस सच पे लिखूं शायरी कैसे!

हर तरफ़ अपनों की लगी है भीड़,
इस शोर को कहूँ तन्हाई कैसे!

अन्दर कुछ,बाहर कुछ और हूँ मैं,
आईने में देखूं अपनी सच्चाई कैसे!

कहते हैं फकीरी में ताक़त गजब है,
कायस्थ तेरे भीतर चलाऊं सुई कैसे!

4 टिप्‍पणियां:

ओम आर्य ने कहा…

too good......

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

सुन्दर!!

"अर्श" ने कहा…

jaari rakhen............badhayee...

वीनस केसरी ने कहा…

बहुत सुन्दर

वीनस केसरी

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...