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19 जून 2009

ग़ज़ल...तो नहीं

जिंदगी ईंटों से बनी कोई इमारत तो नहीं!
कब्रिस्तान में लाशों को शिकायत तो नहीं?


सिकंदर बड़े-बड़े वक्त की मिट्टी में मिले,
मौत शहंशाह की भी क़यामत तो नहीं!


दाग मेरे दामन में थे पुराने कितने,
दिखाया था तुझे की, वकालत तो नहीं।


मासूमों के खून से रंगी है सरजमीं ,
शायरी है जंग मेरी, इबादत तो नहीं।


झींगुर की आवाज़ से सन्नाटा मिटे,
खुदा तेरी इतनी इनायत तो नहीं।

2 टिप्‍पणियां:

श्यामल सुमन ने कहा…

मासूमों के खून से रंगी है सरजमीं ,
शायरी है जंग मेरी, इबादत तो नहीं।

बेहतर पंक्तियाँ। वाह।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

नीरज गोस्वामी ने कहा…

झींगुर की आवाज़ से सन्नाटा मिटे,
खुदा तेरी इतनी इनायत तो नहीं

क्या कहूँ? वाह...
नीरज

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...