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19 जून 2009

प्रसून कंटक: ०७/०९/१९९३

कहीं
एक बम फटा,
दो चार आदमजात
लोथड़ों में बदल गए,
लेकिन
अनेक दिल भी फटे,
कुछ डर गए,
कुछ जल उठे।

हिंदू मरा
मुसलमान ने मारा
या
फ़िर पंजाबियों ने मारा,
सोचते हैं हिन्दुस्तानी
बम था पाकिस्तानी।

बस
अब प्रतिशोध था,
ह्रदय का क्रोध था;
मरने वाले मर गए बम-विस्फोट में,
मारने वाले मार गए बम-विस्फोट से।

देख तू
तुने ये क्या किया
तेरे रक्षा अस्त्र ने
दुनिया को त्रस्त किया।

वाह रे आविष्कारक
तुने तो आदमी को ही मार ।

3 टिप्‍पणियां:

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत भावपूर्ण रचना है आपकी...वाह...आप बहुत संवेदन शील हैं और ये ही आपकी लेखन की ताकत भी है...लिखते रहिये...
नीरज

Neeraj Kumar ने कहा…

नीरज सर,
धन्यवाद...
आपका और आप जैसों का प्रोत्साहन मेरे लिए इस राह का संबल है...
एक बार और शुक्रिया...

shama ने कहा…

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