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19 मई 2010

धुँआ-धुँआ जिंदगी...

धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...

कौन कहता है
है आसान यह खेल,
लेना जन्म
और मर जाना एक दिन!!!

धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...

कौन नहीं चाहता है
है निभाना रिश्तों को,
हो जाना किसी  का
फिर जुदा होना धीरे-धीरे!!!

धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...

कौन नहीं जानता है
है दस्तूर प्रकृति का, 
चकाचौंध रौशनी के बाद
घिर जाना अँधेरे में हर रात!!!

धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...

3 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah har baat seedhi dil pe lagi aur sochne ko majboor ho gya...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत ही बढ़िया रहे ये शब्द-चित्र!

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बेहतरीन!!

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एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...