धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...
कौन कहता है
है आसान यह खेल,
लेना जन्म
और मर जाना एक दिन!!!
धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...
कौन नहीं चाहता है
है निभाना रिश्तों को,
हो जाना किसी का
फिर जुदा होना धीरे-धीरे!!!
धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...
कौन नहीं जानता है
है दस्तूर प्रकृति का,
चकाचौंध रौशनी के बाद
घिर जाना अँधेरे में हर रात!!!
धुँआ-धुँआ जिंदगी...
तन्हा-तन्हा आदमी...
3 टिप्पणियां:
waah har baat seedhi dil pe lagi aur sochne ko majboor ho gya...
बहुत ही बढ़िया रहे ये शब्द-चित्र!
बहुत बेहतरीन!!
एक टिप्पणी भेजें
एक अदना सा आदमी हूँ और शौकिया लिखने की जुर्रत करता हूँ... कृपया मार्गदर्शन करें...