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Strongly Yours Neeraj Kumar
Neeraj Kumar has been publishing blog on various topics for a long time. It started with publishing his Short Hindi Poems. Now it is time to write on wide range of subjects which affects people in a big way. Hope he can showcase real person who is emotional to the world and the humanity.
फ़ॉलोअर
24 मार्च 2017
20 मार्च 2016
यौवन के नवरंग...
इस बरस रंगीली होली में
तन ना रंगाऊं, मन रंगाऊं।
इस बरस उम्र की डोली में,
मैं ना जाऊँ, ठहर ही जाऊँ।
तन ना रंगाऊं, मन रंगाऊं।
इस बरस उम्र की डोली में,
मैं ना जाऊँ, ठहर ही जाऊँ।
इस बरस सखियों की ठिठोली से
मैं क्यों घबराऊँ, मैं तो मुस्काऊँ।
इस बरस जीवन के रंगों को
मैं ना पाऊँ तो कब पाऊं।
मैं क्यों घबराऊँ, मैं तो मुस्काऊँ।
इस बरस जीवन के रंगों को
मैं ना पाऊँ तो कब पाऊं।
इस बरस रति के अंगों को
मैं ना सजाऊँ तो कब सजाऊँ?
इस बरस यौवन की कलियों को
मैं ना चत्काऊँ तो कब चत्काऊँ?
मैं ना सजाऊँ तो कब सजाऊँ?
इस बरस यौवन की कलियों को
मैं ना चत्काऊँ तो कब चत्काऊँ?
इस बरस प्रेम के सागर में
मैं ना नहाऊं, डूब ही जाऊं।
इस बरस बदन की अग्नि को
मैं ना बुझाऊँ और भड़काऊं।
मैं ना नहाऊं, डूब ही जाऊं।
इस बरस बदन की अग्नि को
मैं ना बुझाऊँ और भड़काऊं।
इस बरस बाबुल के आँगन को
मैं ना छोडूं तो कब छोडूं?
इस बरस पिया के सपनों को
मैं ना देखूं तो कब देखूं?
मैं ना छोडूं तो कब छोडूं?
इस बरस पिया के सपनों को
मैं ना देखूं तो कब देखूं?
इस बरस साजन की बाहों में
मैं ना जाऊं तो मर ही जाऊं।
इस बरस रंगीली होली में
तन रंगाऊं, मन भी रंगाऊं।
मैं ना जाऊं तो मर ही जाऊं।
इस बरस रंगीली होली में
तन रंगाऊं, मन भी रंगाऊं।
10 मार्च 2016
जाति का उत्थान...
पापा अफ़सोस जाता रहे थे कि उनकी जाति में कोई ढंग का रंगदार पैदा नहीं होता। इस जमाने में जाति के उत्थान के लिए रंगदार, गुंडों और बाहुबलियों का होना बहुत जरुरी है...
बड़े भैया बताने लगे कि उनका सहपाठी दिनेश चंद पाठक आजकल डी सी पी कहलाता है। सुनते हैं कि कई मंत्रियों तक उसकी पहुँच है। अपने लोगों को नौकरी दिलाता है, जमीन-जायदाद का फ़ैसला करता है। थाने पहुँच जाए तो थानेदार तक सलूट करता है। शायद इस बार एम.एल.ऐ भी हो जाए। लोग भी उसे बहुत सम्मान देते हैं...
कोने में बैठा बबलू गौर से उनकी बातें सुन रहा था। कह उठा-"पापा, आप कहते हैं मैं लंठ हूँ। मारपीट करता रहता हूँ। मैं बन सकता हूँ डी सी पी ना?
पापा के होश गम, मम्मी अवाक् और भैया गुर्रा उठे-"हाथ-पैर तोड़कर घर में बंद कर दूंगा...गुंडा बनेगा! आवारा कहीं का...
बड़े भैया बताने लगे कि उनका सहपाठी दिनेश चंद पाठक आजकल डी सी पी कहलाता है। सुनते हैं कि कई मंत्रियों तक उसकी पहुँच है। अपने लोगों को नौकरी दिलाता है, जमीन-जायदाद का फ़ैसला करता है। थाने पहुँच जाए तो थानेदार तक सलूट करता है। शायद इस बार एम.एल.ऐ भी हो जाए। लोग भी उसे बहुत सम्मान देते हैं...
कोने में बैठा बबलू गौर से उनकी बातें सुन रहा था। कह उठा-"पापा, आप कहते हैं मैं लंठ हूँ। मारपीट करता रहता हूँ। मैं बन सकता हूँ डी सी पी ना?
पापा के होश गम, मम्मी अवाक् और भैया गुर्रा उठे-"हाथ-पैर तोड़कर घर में बंद कर दूंगा...गुंडा बनेगा! आवारा कहीं का...